एम.एस स्वामीनाथन
M. S. Swaminathan

हरित क्रांति के जनक


एम.एस. स्वामीनाथन का पूरा नाम : मनकोम्बु संबासिवना स्वामीनाथन था। डॉ. मनकोम्बु संबासिवना स्वामीनाथन का जन्म 7 अगस्त, 1925 को तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी के कुंभभोणम थंगम्मल के घर हुआ था। जो महात्मा गांधी की मान्यताओं और भारत के स्वतंत्रता संग्राम से काफी प्रभावित थे। शुरुआत में एम.एस. स्वामीनाथन का इरादा चिकित्सा के क्षेत्र में अपना पेशा अपनाने का था, लेकिन 1942-1943 के बंगाल अकाल की घटना का गंभीर प्रभाव पड़ा और अपना मन बदल लिया, और भारत के कृषि उद्योग को बढ़ाने की उनकी इच्छा जागृत हुई।

एम.एस. स्वामीनाथन (M. S. Swaminathan) के पिता एम के सांबसिवन एक मेडिकल डॉक्टर थे और उनकी मां पार्वती थंगम्मल थीं। इनकी प्रारंभिक शिक्षा अपने निवासी शहर के स्थानीय से हुई, और फिर एक मेडिकल स्कूल में प्रवेश लिया। लेकिन 1943 की बंगाल की भुखमरी ने उनके दिमाग को बदल दिया और उन्हें कृषि शोध में जाने का निर्णय लिया। और उन्होंने त्रिवेंद्रम के महाराजा कॉलेज से जूलॉजी में स्नातक की डिग्री प्राप्त की, फिर मद्रास कृषि कॉलेज से कृषि विज्ञान में स्नातक की डिग्री हासिल की। उसके बाद, उन्होंने इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट (IARI) से प्लांट ब्रीडिंग और जेनेटिक्स में पोस्ट-ग्रेजुएशन किया। पोस्ट-ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद, उन्होंने UNESCO के फैलोशिप ली और नीदरलैंड्स के Wageningen Agricultural University में आलू की जेनेटिक्स पर शोध किया। उन्होंने फिर कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ एग्रीकल्चर (Cambridge University School of Agriculture) से डॉक्टरेट (PhD) प्राप्त किया। इसके बाद, वे विस्कांसिन विश्वविद्यालय (University of Wisconsin) में एक शोधकर्ता के रूप में काम करने गए। 1954 में भारत लौटने का निर्णय लिया और IARI में अपने शोध को आगे बढ़ाया। और उन्होंने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के (ICAR) निदेशक-महानिदेशक के रूप में कार्य किया।

महान कृषि वैज्ञानिक डॉ. मनकोम्बु संबासिवना स्वामीनाथन (Dr. M. S. Swaminathan) 98 साल की उम्र में गुरुवार (28 सितंबर, 2023) को तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में सुबह 11.20 बजे निधन हो गया।

योगदान:

हरित क्रांति में योगदान: हरित क्रांति में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका के लिये व्यापक रूप से पहचाना गया, जो भारतीय कृषि में एक परिवर्तनकारी चरण था जिसने फसल उत्पादकता में उल्लेखनीय वृद्धि की और राष्ट्र के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की।

वर्ष 1965-70 के दौरान गेहूँ की किस्मों पर मेक्सिको के कृषि वैज्ञानिक डॉ. नारमन बोरलॉग के साथ डॉ. स्वामीनाथन ने शोध को जारी रखते हुए, प्रयोगशालाओं में अनाज (बीजों) को भारतीय मृदा के अनुकूल बनाने के लिए संशोधित किया जिससे अधिक उपज की प्राप्ति हुई और संक्रमण से मुक्ति मिली। इस परिवर्तन से फसल की पैदावार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, जिससे भारत खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर हो गया और अकाल का खतरा टल गया।

कृषक वर्गों का कल्याण: स्वामीनाथन ने किसानों के कल्याण हेतु कृषि उपज के लिये उचित मूल्य और धारणीय कृषि पद्धतियों पर ज़ोर दिया। 'स्वामीनाथन रिपोर्ट' कृषि क्षेत्र में संकट के कारणों का आकलन प्रस्तुत करती है।

न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP): इस रिपोर्ट की सिफारिशों में से एक है, इसके अनुसार MSP औसत उत्पादन लागत से कम से कम 50% अधिक होना चाहिये, यह आज भी पूरे भारत में कृषि संघों की प्राथमिक मांग है। MSP वह कीमत है जिस पर सरकार सीधे किसानों से फसल खरीदती है।

न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP): इस रिपोर्ट की सिफारिशों में से एक है, इसके अनुसार MSP औसत उत्पादन लागत से कम से कम 50% अधिक होना चाहिये, यह आज भी पूरे भारत में कृषि संघों की प्राथमिक मांग है। MSP वह कीमत है जिस पर सरकार सीधे किसानों से फसल खरीदती है।

डॉ. स्वामीनाथन ने पूरे भारत में हज़ारों आई.सी.ए. आर, केंद्र स्थापित करके किसानों को मौसम और फसल पैटर्न पर शिक्षित करने के लिए काम किया।

पौधों की किस्मों और किसानों के अधिकार का संरक्षण अधिनियम 2001: उन्होंने पौधों की किस्मों और किसानों के अधिकार के संरक्षण अधिनियम 2001 को विकसित करने में प्रमुख भूमिका निभाई।

डॉ. स्वामीनाथन ने'मन्नार की खाड़ी समुद्री जीवमंडल (Go MMB)' और 'समुद्र तल से नीचे धान की पारंपरिक खेती' वाले केरल के कुट्टनाड को विश्व स्तर पर महत्त्वपूर्ण कृषि विरासत स्थल के रूप में मान्यता प्रदान कराने के लिये जाना जाता है।

डॉ. स्वामीनाथन ने इन क्षेत्रों की जैवविविधता और पारिस्थितिकी के संरक्षण एवं संवर्द्धन में भी अहम योगदान दिया।

डॉ. स्वामीनाथन ने सतत् कृषि और ग्रामीण विकास को बढ़ावा देने के लिये वर्ष 1988 में एम. एस. स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन (MSSRF) की भी स्थापना की। MSSRF गरीब समर्थक, महिला समर्थक और प्रकृति समर्थक दृष्टिकोण के साथ विशेष रूप से जनजातीय एवं ग्रामीण समुदायों पर ध्यान केंद्रित करता है।

पुरस्कार और सम्मान

* पद्म पुरस्कार: “पद्मश्री' (1967), 'पद्मभूषण' (1972) और“पद्मविभूषण ' (1989)
* वर्ष 1971 में सामुदायिक नेतृत्व के लिए 'मैग्सेसे पुरस्कार ', वर्ष 1986 में अल्बर्ट आइंस्टीन “विश्व विज्ञान पुरस्कार ', वर्ष 1987 में पहला “विश्व खाद्य पुरस्कार” सहित विभिन्‍न अंतर्राष्ट्रीय सम्मान।
* लंदन की रॉयल सोसाइटी सहित विश्व की 14 प्रमुख विज्ञान परिषदों ने एम.एस. स्वामीनाथन को अपना मानद सदस्य चुना है। अनेक विश्वविद्यालयों ने डॉक्टरेट की उपाधियों से उन्हें सम्मानित किया है।

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डॉ. मनकोम्बु संबासिवना स्वामीनाथन
Dr. M. S. Swaminathan

पूरा नाम मनकोम्बु संबासिवना स्वामीनाथन
जन्म 7 अगस्त, 1925
जन्म भूमि मद्रास
मृत्यु 28 सितंबर, 2023
मृत्यु स्थान चेन्नई