सिन्धु घाटी सभ्यता

Indus Valley Civilization in hindi


सिन्धु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) : सिंधु घाटी सभ्यता को सिंधु नदी के आसपास बसे होने के कारण ही सिंधु घाटी सभ्यता या सिंधु सभ्यता कहा जाता है, साथ ही इसे हड़प्पा सभ्यता नाम से जाना जाता है।

*1920 तक, सभ्यता के अवशेष केवल सिंधु घाटी क्षेत्र में पाए गए; इसलिए, इसे सिंधु सभ्यता के रूप में जाना जाता था। 1920-21 में, डीआर सेलिनी (हड़प्पा में) और आरडी बनर्जी (मोहनजो दारो में) द्वारा खुदाई में हड़प्पा सभ्यता की खोज की गई थी। सभ्यता के अवशेषों को पहली बार हड़प्पा में देखा गया था। इसलिए इसे हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है।

* इस सभ्यता की अब तक खोजी गई 1,400 बस्तियाँ लगभग 1,600 किमी (पूर्व से पश्चिम) और 1,400 किमी (उत्तर से दक्षिण) तक फैले एक बहुत विस्तृत भौगोलिक क्षेत्र में वितरित हैं।

* इनमे से लगभग 925 बस्तियाँ अब भारत में हैं और 475 पाकिस्तान में हैं।

* हड़प्पा सभ्यता का कुल भौगोलिक विस्तार लगभग 1,250,000 वर्ग किलोमीटर है | किमी जो मिस्र के क्षेत्रफल के 20 गुना से अधिक और मिस्र और मेसोपोटामिया की सभ्यताओं के संयुक्त क्षेत्र के 12 गुना से अधिक है ।
सिंधु सभ्यता / हड़प्पा सभ्यता का काल निर्धारण – :
एच. हेरास के अनुसार (नक्षत्रीय आधार पर) – 6000 ईसा पूर्व,
माधोस्वरूप वत्स के अनुसार – 3500-2700 ईसा पूर्व,
जॉन मार्शल के अनुसार – 3250-2750 ईसा पूर्व,
अर्नेस्ट मैके के अनुसार – 2800-2500 ईसा पूर्व,
मार्टीमर व्हीलर के अनुसार – 2500-1500 ईसा पूर्व,
रेडियो कार्बन पद्धति अनुसार – 2350-1750 ईसा पूर्व,
सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल :
हड़प्पा :
* हड़प्पा की खुदाई वर्ष 1921 में दयाराम साहनी व सहायक माधोस्वरूप वत्स द्वारा करवाई गयी थी।
* यह पंजाब के मांटगोमरी जिले में रावी नदी के तट पर स्थित है।
हड़प्पा से प्राप्त अवशेषों एवं साक्ष्य : पाषाण नर्तक, श्रमिक आवास, काले पत्थर का शिव लिंग, डेढ़ फीट का पैमाना, स्वस्तिक (शुभ-लाभ), ताम्बे का वृषभ, धोति पहने एवं शाल ओढ़े व्यक्ति की मूर्ति, मूर्ति, जिसमें स्त्री के गर्भ से निकलता पौधा दिखा गया है, प्रसाधन मंजूषा (बधनी, कान कुदेरनी, चिमटी), प्राचीनतम कृषक समुदाय साक्ष्य, भट्ठों के अवशेष, एक बर्तन पर बना मछुआरे का चित्र, शंख का बना बैल, पीतल का बना इक्का, वृत्तिकार चबूतरे (ईंटों द्वारा निर्मित), गेहूँ और जौ के दानों के अवशेष, कब्रिस्तान R-37 (सामान्य आवास के दक्षिण में), शिव के “नटराज” रूप को इंगित करती पुरुष की नग्न प्रतिमा इंगित करती पुरुष की नग्न प्रतिमा, नग्न पुरुष की आकृति (यक्ष की समान), इंद्रगोप के मनके (गोलाकार), मेष (भेड़) की मूर्ति का टुकड़ा, नर कबंध की प्रस्तर मूर्ति का साक्ष्य, परवर्ती काल में सुरक्षा सुरक्षा के साक्ष्य, मादा जननांग का प्रतीक (पत्थर निर्मित), ताम्र निर्मित मानवीय आकृति
मोहनजोदड़ो :
* मोहनजोदड़ो की खुदाई वर्ष 1922 में राखालदास बैनर्जी द्वारा करवाई गयी थी।
* मोहनजोदड़ो का अर्थ होता है “मृतकों का टीला”।
* यह सिंधु नदी के किनारे बसा हुआ है। यह सिन्ध (पाकिस्तान) के लरकाना जिले में मौजूद है।
* मोहनजोदजो का विशाल स्रानागार हड़प्पा स्थल की सबसे उल्लेखनीय विशेषता है ।
* मोहनजोदड़ो और अन्य स्थलों पर मिले सूती कपड़े के टुकड़े बताते हैं कि कपास भी उगाई जाती थी।
* मोहनजोदड़ो और बनावली में मिट्टी के हल के मॉडल मिले हैं ।
मोहनजोदड़ो से प्राप्त अवशेषों एवं साक्ष्य : सूती कपड़ा, पुजारी का सर (चूना-पत्थर द्वारा निर्मित), कांस्य नर्तकी, योगी चित्रित मुहर, मातृदेवी की मृण्मूर्ति, लिंगीय प्रस्तर, ताम्बे का ढेर, कुबड़दार ताम्बे का बैल, पुरोहित आवास, महाविद्यालय भवन, सभा भवन, हाथी का कपालखंड, राजमुंदाक (sealings), नाव का चित्र अंकित मुहरें, स्तम्भयुक्त भग्नावशेष, हल का प्रारूप, जहाज की आकृति अंकित मुहर, काँसे से निर्मित भैस एवं भेड़ का साक्ष्य (सामूहिक हत्याकांड का साक्ष्य), ताम्र निर्मित कुल्हाड़ियाँ, बाढ़ द्वारा विनाश का साक्ष्य, क्षेत्रफल के दृष्टिकोण से सैन्धव का सर्वाधिक विस्तृत स्थल
कालीबंगा :
* कालीबंगा की खुदाई वर्ष 1953 में अमलानन्द घोष द्वारा तथा बी. के. थापर द्वारा 1960 में करवाई गयी थी।
* कालीबंगा का अर्थ होता है “काले रंग की चूड़ियाँ”।
* यह स्थल राजस्थान के गंगानगर जिले में घग्गर नदी के तट पर स्थित है।
* कालीबंगा मेंखोदे गए खेती वाले खेत में आड़ी-तिरछी खांचों के निशान दिखाई देते हैं जो यह दर्शाता है कि दो फसलें एक साथ उगाई गई थीं। यह पद्धति आज भी राजस्थान, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपनाई जाती है।
कालीबंगा से प्राप्त अवशेषों एवं साक्ष्य : अग्निपूजा सम्बन्धी जानकारी, चिमनी का साक्ष्य, कच्ची ईंटों की किलेबंदी का साक्ष्य, हवन कुंड, हल का निशान, चना और सरसों एक साथ उगाये जाने का साक्ष्य, चूड़ियाँ (पकी मिट्टी और तांबा से निर्मित), बैलगाड़ी के अस्तित्व का अप्रत्यक्ष प्रमाण, तंदूर (आंगन में खाना पकाने का साक्ष्य), ताम्बे के मनके, मातृ देवी की मूर्तियों का पूर्ण अभाव, सांड की खंडित मृण्मूर्ति, सिलबट्टे का साक्ष्य, अलंकृत ईंटें, राजमुन्दाक (sealings), भूकम्प का प्राचीनतम साक्ष्य, अश्व का अवशेष, “बोस्टोफेदम” शैली का साक्ष्य, ऊंट की हड्डियाँ, लकड़ी की बनी नालियाँ, मेसोपोटामिया की मुहर, सूरती की उष्मा से पकी हुई ईंटों का साक्ष्य, निचले शहर के दुर्गीकृत होने का साक्ष्य, हड़प्पा पूर्व एवं हड़प्पा-कालीन संस्कृतियाँ का साक्ष्य, कब्रिस्तान का साक्ष्य, विकसित कुटीर उद्योग का साक्ष्य, चिकित्सकीय उपचार (खोपड़ी की शल्यक्रिया) का साक्ष्य
चन्हूदड़ो :
* चन्हूदड़ो की खोज वर्ष 1931 में एन.जी. मजूमदार द्वारा की गयी थी, जिसे पुरातत्वविद मैके ने वर्ष 1935 में आगे बढ़ाया।
* यह स्थल सिंध (पाकिस्तान) में स्थित है।
चन्हूदड़ो से प्राप्त अवशेषों एवं साक्ष्य : दवात, मसि पात्र, मनके बनाने का कारखाना, झूकर संस्कृति एवं झांगर संस्कृति के अवशेष, अलंकृत हाथी, एक कुत्ते द्वारा बिल्ली का पीछा करते पद-चिन्ह, लिपस्टिक का साक्ष्य, दुर्ग के साक्ष्य का अभाव, मोर की आकृति के मिट्टी के बर्तन, बाढ़ द्वारा विनाश का साक्ष्य, सीप के आभूषण बनाने का कारखाना
बनावली :
* बनावली की खोज वर्ष 1973 में आर.एस. बिष्ट द्वारा की गयी थी।
* यह स्थल हरियाणा के हिसार जिले में स्थित है।
बनावली से प्राप्त अवशेषों एवं साक्ष्य : कार्नेलियन के मनके, ताम्बे के बाणाग्र, हल की आकृति के खिलौने, हल का पूर्ण प्रारूप, हड़प्पा पूर्व एवं हड़प्पा-कालीन संस्कृतियाँ का साक्ष्य, पहिये के निशान, जुती हुई खेत के अवशेष
लोथल :
* लोथल की खोज वर्ष 1957 में रंगनाथ राव द्वारा की गयी थी।
* यह स्थल गुजरात के अहमदाबाद जिले में भोगवा नदी के तट पर स्थित है।
* लोथल में मिला गोदीबाड़ा एक अन्य महत्वपूर्ण संरचना थी। यह लंबाई में,35 मी, चौड़ाई में और 8 मी. गहराई में था।
* लोथल से मस्तूल के लिए छड़ी से बने सॉकेट के साथ जहाज या नाव मिली है।
लोथल से प्राप्त अवशेषों एवं साक्ष्य : सूती कपड़ा, सीपी पैमाना, एक खिलौना जिस पर एक व्यक्ति दो व्यक्ति दो पहियों पर खड़ा है, मनके बनाने का कारखाना, गोदी बाड़ा (पूर्वी खंड में स्थित), चावल व बाजरा की भूसी, फारस की मुहरें, अग्निपूजा सम्बन्धी जानकारी, युग्मित समाधियाँ – 3, चिमनी का साक्ष्य, स्केल का साक्ष्य, हाथी दांत का साक्ष्य, घोड़े की लघु मृण्मूर्तियाँ, राजमुंदाक (sealings), नाव का चित्र अंकित मुहरें, आटा पीसने की चक्की (दो “पाट” पत्थर निर्मित), सिन्धु घाटी के बंदरगाह क्षेत्र, शतरंज का बोर्ड, चावल का साक्ष्य, टेराकोटा का बना गोरिल्ला, ममी की आकृति, ताम्बे का कुत्ता, जहाज की आकृति अंकित मुहर, घोड़े की मृण्मूर्तियाँ, बतख का चित्रण यहाँ सर्वाधिक हुआ है, चक्की एवं बरमा के साक्ष्य मिले हैं, मिट्टी (टेराकोटा) का जहाज, ऐसे मकान का साक्ष्य, जिसमें प्रवेश द्वारा मुख्य सड़क की ओर था, कांसे का छड़, शतरंज जैसे खेल का साक्ष्य, बाढ़ द्वारा विनाश का साक्ष्य, मालगोदाम का साक्ष्य, उत्तर हड़प्पा सभ्यता के स्थल, कब्रिस्तान का साक्ष्य, चिकित्सकीय उपचार (खोपड़ी की शल्यक्रिया) का साक्ष्य, पंचतंत्र के चालाक लोमड़ी की कहानी के सादृश्य जार पर चित्रकारी का साक्ष्य, बाजरे के दाने मिले हैं.
आलमगीरपुर:
* इसकी खुदाई वर्ष 1958 में यज्ञदत्त शर्मा द्वारा करवाई गयी थी।
* यह स्थल उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में हिण्डन नदी के तट पर स्थित है।
आलमगीरपुर से प्राप्त अवशेषों एवं साक्ष्य : तीन पायों वाली परातें, मकान बनाने में दो प्रकार की ईंटें, एक नांद पर अंकित चिन्ह जिससे प्रतीत होता है कि लोग बारीक कपड़ा बुनना जानते थे.
रोपड़ :
* रोपड़ की खुदाई वर्ष 1953 में यज्ञदत्त शर्मा द्वारा करवाई गयी थी।
*यह स्थल पंजाब राज्य में सतलुज नदी के तट पर स्थित है।
रोपड़ से प्राप्त अवशेषों एवं साक्ष्य : ताँबे की कुल्हाड़ी, आदमी और कुत्ते की एक कब्रगाह आदि।
सुरकोटड़ा :
* सुरकोटड़ा की खुदाई वर्ष 1964 में जगपति जोशी द्वारा करवाई गयी थी।
*यह स्थल गुजरात राज्य के कच्छ नामक जगह पर स्थित है।
सुरकोटड़ा से प्राप्त अवशेषों एवं साक्ष्य : अश्वास्थि, बैल की पहियेदार मूर्ति, अस्थिकलश, बड़ी चट्टान से ढकी एक कब्र, अंडाकार शव के अवशेष, पत्थर से ढके कब्र का साक्ष्य, पत्थर की चिनाई वाले भवनों के साक्ष्य, अग्निसंहार का साक्ष्य, ईरानी तथा कुल्ली संस्कृति की कलाकृतियाँ का साक्ष्य, निचले शहर के दुर्गीकृत होने का साक्ष्य, हड़प्पा के अधिवास की तीनों अवस्थाओं – पूर्व हड़प्पा, हड़प्पा और हड़प्पा का साक्ष्य
धौलावीरा :
* धौलावीरा की खोज वर्ष 1967 में जगपति जोशी द्वारा की गयी थी, परन्तु इसकी व्यापक खुदाई रविंद्र सिंह बिष्ट द्वारा करवाई गयी थी।
*यह स्थल गुजरात राज्य के कच्छ जिले में मानहर एवं मानसर नदी के बीच स्थित है।
* यह पहला ऐसा नगर है जो तीन भागों में बटा हुआ था – दुर्गभाग, मध्यम भाग और निचला नगर।
* धौलावीरा में मुख्य प्रवेश द्वार के पास एक गिरा हुआ साइनबोर्ड पाया गया। यह एक बड़ा शिलालेख है जिसमें दस प्रतीक हैं, जिनमें से प्रत्येक का माप लगभग 37 सेमी ऊँचा और 25 से 27 सेमी चौड़ा है, जिसमें किसी नाम या शीर्षक की घोषणा की गई है।
धौलावीरा से प्राप्त अवशेषों एवं साक्ष्य : अनेक जलाशय का प्रमाण, निर्माण में पत्थर का साक्ष्य, पत्थर पर चमकीला पॉलिश, त्रिस्तरीय नगर-योजना, क्षेत्रफल की दृष्टिकोण से भारत सैन्धव स्थलों में सबसे बड़ा, घोड़े की कलाकृतियाँ के अवशेष, श्वेत पॉलिशदार पाषाण खंड, सैन्धव लिपि के दस ऐसे अक्षर प्रकाश में आये जो काफी बड़े हैं और विश्व की प्राचीन अक्षरमाला में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं.
कोटदीजी :
* कोटदीजी की खुदाई वर्ष 1955 में एफ.ए. खान द्वारा करवाई गयी थी।
* यह स्थल मोहनजोदड़ो के समीप स्थित है।
कोटदीजी से प्राप्त अवशेषों एवं साक्ष्य : चाँदी के सर्वप्रथम प्रयोग के साक्ष्य, बारहसिंगा का नमूना।
सुत्कोगेंडोर :
* सुत्कोगेंडोर की खुदाई वर्ष 1927 में औरेल स्टाईन के द्वारा करवाई गयी थी।
* यह स्थल बलूचिस्तान में दाश्क नदी के तट पर स्थित है।
सुत्कोगेंडोर से प्राप्त अवशेषों एवं साक्ष्य : मिट्टी की बानी चूड़ियाँ, राख से भरा बर्तन, ताम्बें की कुल्हाड़ी, मनुष्य की हड्डियाँ।
सिंधु घाटी सभ्यता के नकारात्मक तथ्य:
* सिन्धु घाटी सभ्यता से मंदर का अवशेष नहीं मिला है।
* सिन्धु घाटी सभ्यता से सुरक्षा के लिए अस्त्र-शस्त्र यथा तलवार/ढाल/कवच नहीं मिले हैं।
* हड़प्पा निवासी ईख, दलहन की खेती नहीं करते थे।
* सिन्धु घाटी सभ्यता से विष्णु उपासना का प्रमाण नहीं मिला है।
* गाय का न तो अंकन मिला है और न ही अस्थि मिली है।
* लोहा का प्रयोग नहीं करते थे।
* सिंह का अंकन नहीं मिला है।
* लोथल/रंगपुर/आमारी से मातृदेवी की प्रतिमा नहीं मिली है।
* सिन्धु घाटी की लिपि अपठनीय है।
* चान्हूदाड़ो से दुर्ग का कोई साक्ष्य नहीं मिला है।
* सिंघु घाटी सभ्यता से चाक द्वारा निर्मित बर्तन/मृद्भांड मिले हैं लेकिन चाक का अवशेष नहीं मिला है।
* सिन्धु घाट सभ्यता से नहर का प्रमाण नहीं मिला है।
* बनवाली और कालीबंगा से जलनिकास व्यवस्था का प्रमाण नहीं मिला है।
* सिन्धु घाटी सभ्यता में सिक्कों का प्रचलन नहीं था।
* पक्की सड़क का कोई प्रमाण नहीं मिला है।
* भेंड का अंकन नहीं है।
* मुहर के ऊपर किसी पशु का अंकन नहीं।
सिंधु सभ्यता में भक्ति व पूजा अर्चना:
* सिंधु सभ्यता के लोग शिव की पूजा किरात (शिकारी), नर्तक, धनुर्धर और नागधारी के स्वरूप में करते थे।
* मातृदेवी (देवी के सौम्य एवं रौद्र रूप की पूजा)।
* पृथ्वी (एक मूर्ति में स्त्री के गर्भ से पौधा निकलता दिखाया गया है जोकि अवश्य ही पृथ्वी का स्वरूप है)।
* प्रजनन शक्ति (लिंग) की पूजा।
* वृक्ष (पीपल और बबुल), पशु (कूबड़ वाला सांड और वृषभ), नाग तथा अग्नि की पूजा भी करते थे।
सिंधु सभ्यता में प्रयोग होने वाले माप-तोल के साधन :
* लोथल में हाथी दांत से बना एक पैमाना प्राप्त हुआ है।
* मोहनजोदड़ो से सेलखड़ी तथा सीप का बना बाट आदि माप-तोल के यंत्र प्राप्त हुये हैं)।
* सिंधु सभ्यता (हड्डपा सभ्यता) के लोग माप-तोल की इकाई से चित-परिचित थे।।
सिंधु सभ्यता में प्रयोग की गयी धातु :
* सिंधु सभ्यता के लोग तांबा, सोना, चाँदी, सीसा, टिन आदि धातुओं का प्रयोग करते थे।
* पहली बार चाँदी का प्रयोग सिंधु सभ्यता में ही किया गया था।।
* सिंधु सभ्यता में सबसे अधिक ताँबे का प्रयोग किया जाता था।।