“जिस तरह सूखी लकड़ी जल्दी से जल उठती है, उसी तरह क्षुधा (भूख) से बावला मनुष्य ज़रा-ज़रा सी बात पर तिनक जाता है।”

― Munshi Premchand, बड़े घर की बेटी

“लिखते तो वह लोग हैं, जिनके अंदर कुछ दर्द है, अनुराग है, लगन है, विचार है। जिन्होंने धन और भोग-विलास को जीवन का लक्ष्य बना लिया, वह क्या लिखेंगे? ”

― Munshi Premchand, बड़े घर की बेटी

“इतना पुराना मित्रता-रूपी वृक्ष सत्य का एक झोंका भी न सह सका। सचमुच वह बालू की ही ज़मीन पर खड़ा था।”

― Munshi Premchand, पंच-परमेश्वर

“वह प्रेम जिसका लक्ष्य मिलन है प्रेम नहीं वासना है।”

― Munshi Premchand

“बूढ़ों के लिए अतीत के सुखों और वर्तमान के दुःखों और भविष्य के सर्वनाश से ज्यादा मनोरंजक और कोई प्रसंग नहीं होता।”

― Munshi Premchand, गोदान

“हमें कोई दोनों जून खाने को दे, तो हम आठों पहर भगवान का जाप ही करते रहें।”

― Munshi Premchand, गोदान

“मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है, जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है.”

― Munshi Premchand, मानसरोवर

“बच्चों के लिए बाप एक फालतू-सी चीज - एक विलास की वस्तु है, जैसे घोड़े के लिए चने या बाबुओं के लिए मोहनभोग। माँ रोटी-दाल है। मोहनभोग उम्र-भर न मिले तो किसका नुकसान है; मगर एक दिन रोटी-दाल के दर्शन न हों, तो फिर देखिए, क्या हाल होता है।”

― Munshi Premchand, मानसरोवर

“हम जिनके लिए त्याग करते हैं उनसे किसी बदले की आशा न रखकर भी उनके मन पर शासन करना चाहते हैं, चाहे वह शासन उन्हीं के हित के लिए हो, यद्यपि उस हित को हम इतना अपना लेते हैं कि वह उनका न होकर हमारा हो जाता है। त्याग की मात्रा जितनी ही ज़्यादा होती है, यह शासन-भावना भी उतनी ही प्रबल होती है और जब सहसा हमें विद्रोह का सामना करना पड़ता है, तो हम क्षुब्ध हो उठते हैं, और वह त्याग जैसे प्रतिहिंसा का रूप ले लेता है।”

― Munshi Premchand, गोदान

“जिन वृक्षों की जड़ें गहरी होती हैं, उन्हें बार-बार सींचने की जरूरत नहीं होती।”

― Munshi Premchand, कर्मभूमि

“धर्म और अधर्म, सेवा और परमार्थ के झमेलों में पड़कर मैंने बहुत ठोकरें खायीं। मैंने देख लिया कि दुनिया दुनियादारों के लिए है, जो अवसर और काल देखकर काम करते हैं। सिद्धान्तवादियों के लिए यह अनुकूल स्थान नहीं है।”

― Munshi Premchand, मानसरोवर

“जीत कर आप अपने धोखेबाजियों की डींग मार सकते हैं, जीत में सब-कुछ माफ है। हार की लज्जा तो पी जाने की ही वस्तु है। ”

― Munshi Premchand, गोदान

“स्त्री पृथ्वी की भाँति धैर्यवान् है, शांति-संपन्न है, सहिष्णु है। पुरुष में नारी के गुण आ जाते हैं, तो वह महात्मा बन जाता है। नारी में पुरुष के गुण आ जाते हैं तो वह कुलटा हो जाती है।”

― Munshi Premchand, गोदान

“स्त्री गालियाँ सह लेती है, मार भी सह लेती है, पर मैके की निंदा उससे नहीं सही जाती। आनन्दी”

― Munshi Premchand, मानसरोवर

“न्याय और नीति सब लक्ष्मी के ही खिलौने हैं। इन्हें वह जैसे चाहती हैं, नचाती हैं।”

― Munshi Premchand, मानसरोवर

“गुड़ घर के अंदर मटकों में बंद रखा हो, तो कितना ही मूसलाधार पानी बरसे, कोई हानि नहीं होती; पर जिस वक़्त वह धूप में सूखने के लिए बाहर फैलाया गया हो, उस वक़्त तो पानी का एक छींटा भी उसका सर्वनाश कर देगा। सिलिया”

― Munshi Premchand, गोदान

“सिपाही को अपनी लाल पगड़ी पर, सुन्दरी को अपने गहनों पर और वैद्य को अपने सामने बैठे हुए रोगियों पर जो घमंड होता है, वही किसान को अपने खेतों को लहराते हुए देखकर होता है।”

― Munshi Premchand, मुक्ति मार्ग

“नाटक उस वक्त पास होता है, जब रसिक समाज उसे पंसद कर लेता है। बरात का नाटक उस वक्त पास होता है, जब राह चलते आदमी उसे पंसद कर लेते हैं।”

― Munshi Premchand, गबन

“रोने के लिए हम एकांत ढूंढते हैं, हसंने के लिए अनेकांत।”

― Munshi Premchand, कर्मभूमि

“शराब अगर लोगो को पागल कर देती है, तो क्या उसे क्या पानी से कम समझा जाए , जो प्यास बुझाता है, जिलाता है, और शांत करता है ?”

― Munshi Premchand, गोदान

“लज्जा ने सदैव वीरों को परास्त किया है।”

― Munshi Premchand, गबन

“दोस्ती के लिए कोई अपना ईमान नहीं बेचता। पंच के दिल में खुदा बसता है।”

― Munshi Premchand, पंच-परमेश्वर

“उदासों के लिए स्वर्ग भी उदास है।”

― Munshi Premchand, गबन

“जीवन क्या, एक दीर्घ तपस्या थी, जिसका मुख्य उद्देश्य कर्तव्य का पालन था?”

― Munshi Premchand, गबन

“केवल कौशल से धन नहीं मिलता। इसके लिए भी त्याग और तपस्या करनी पड़ती है। शायद इतनी साधना में ईश्वर भी मिल जाय। हमारी सारी आत्मिक और बौद्धिक और शारीरिक शक्तियों के सामंजस्य का नाम धन है।”

― Munshi Premchand, गोदान

“आशा तो बड़ी चीज़ है, और फिर बच्चों की आशा! उनकी कल्पना तो राई का पर्वत बना लेती है।”

― Munshi Premchand, मानसरोवर

“पुरुष में थोड़ी-सी पशुता होती है, जिसे वह इरादा करके भी हटा नहीं सकता। वही पशुता उसे पुरुष बनाती है। विकास के क्रम से वह स्त्री से पीछे है। जिस दिन वह पूर्ण विकास को पहुंचेगा, वह भी स्त्री हो जाएगा। वात्सल्य, स्नेह, कोमलता, दया, इन्हीं आधारों पर यह सृष्टि थमी हुई है और यह स्त्रियों के गुण हैं।”

― Munshi Premchand, कर्मभूमि

“देह के भीतर इसीलिए आत्मा रक्खी गई है कि देह उसकी रक्षा करे। इसलिए नहीं कि उसका सर्वनाश कर दे।”

― Munshi Premchand, गबन

“मनुष्य के मन और मस्तिष्क पर भय का जितना प्रभाव होता है, उतना और किसी शक्ति का नहीं। प्रेम, चिंता, हानि यह सब मन को अवश्य दुखित करते हैं, पर यह हवा के हल्के झोंके हैं और भय प्रचंड आँधी है। ”

― Munshi Premchand, मानसरोवर

“अज्ञान में सफाई है और हिम्मत है उसके दिल और जबान में पर्दा नहीं होता, न कथनी और करनी में विरोध। क्या यह अफसोस की बात नहीं है कि ज्ञान अज्ञान के आगे सिर झुकाए?”

― Munshi Premchand, गुप्त धन

“माता का हृदय प्रेम में इतना अनुरक्त रहता है कि भविष्य की चिन्त्ज्ञ और बाधाएं उसे जरा भी भयभीत नहीं करतीं।”

― Munshi Premchand, निर्मला

“बुद्‌धि के हाथ में अधिकार भी देना चाहते हैं, सम्मान भी, नेत्तृत्व भी; लेकिन संपत्ति किसी तरह नहीं। बुद्‌धि का अधिकार और सम्मान व्यक्ति के साथ चला जाता है, लेकिन उसकी संपत्ति विष बोने के लिए, उसके बाद और भी प्रबल हो जाती है।”

― Munshi Premchand, गोदान

“आपकी ज़बान में जितनी बुद्धि है, काश उसकी आधी भी मस्तिष्क में होती! खेद यही है कि सब कुछ समझते हुए भी आप अपने विचारों को व्यवहार में नहीं लाते।”

― Munshi Premchand, गोदान

“पुरुषार्थी लोग दूसरों की सम्पत्ति पर मुंह नहीं फैलाते। अपने बाहुबल का भरोसा रखते हैं।”

― Munshi Premchand, प्रेमाश्रम

“बुद्धि अगर स्वार्थ से मुक्त हो, तो हमे उसकी प्रभुता मानने में कोई आपत्ति नहीं।”

― Munshi Premchand, गोदान

“आत्माभिमान को भी कर्त्तव्य के सामने सिर झुकाना पड़ेगा।”

― Munshi Premchand, गोदान

“वही तलवार, जो केले को नहीं काट सकती, सान पर चढ़कर लोहे को काट देती है। मानव-जीवन में लाग बड़े महत्त्व की वस्तु है। जिसमें लाग है, वह बूढ़ा भी हो तो जवान है। जिसमें लाग नहीं, गैरत नहीं, वह जवान भी मृतक है।”

― Munshi Premchand, मानसरोवर

“दौलत से आदमी को जो सम्मान मिलता है, वह उसका सम्मान नहीं उसकी दौलत का सम्मान है”

― Munshi Premchand, गोदान

“जो कुछ अपने से नहीं बन पड़ा, उसी के दुःख का नाम तो मोह है ।”

― Munshi Premchand, गोदान

“वह निर्भीक था, स्पष्टवादी था, साहसी था, स्वदेश-प्रेमी था, निःस्वार्थ था, कर्तव्यपरायण था। जेल जाने के लिए इन्हीं गुणों की जरूरत है।”

― Munshi Premchand

“जब किसी कौम की औरतों में गैरत नहीं रहती तो वह कौम मुरदा हो जाती है।”

― Munshi Premchand, मानसरोवर

“जो व्यक्ति कर्म और वचन में सामंजस्य नहीं रख सकता, वह और चाहे जो कुछ हो, सिद्धांतवादी नहीं है।”

― Munshi Premchand, गोदान

“जिस तरह दानशीलता मनुष्य के दुर्गुणों को छिपा लेती है उसी तरह कृपणता उसके सद्‌गुणों पर पर्दा डाल देती है।”

― Munshi Premchand, गुप्त धन

“छोटे विचार पवित्र भावों के सामने दब जाते हैं।”

― Munshi Premchand, सेवा सदन

“युवावस्था में एकान्तवास चरित्र के लिए बहुत ही हानिकारक है।”

― Munshi Premchand, निर्मला

“जिस दंड का हेतु ही हमें न मालूम हो, उस दंड का मूल्य ही क्या! वह तो ज़बर्दस्त की लाठी है, जो आघात करने के लिए कोई कारण गढ़ लेती है।”

― Munshi Premchand, गबन

“रूदन में कितना उल्लास, कितनी शांति, कितना बल है। जो कभी एकांत में बैठकर, किसी की स्मृति में, किसी के वियोग में, सिसक-सिसक और बिलखबिलख नहीं रोया, वह जीवन के ऐसे सुख से वंचित है, जिस पर सैकड़ों हंसियां न्योछावर हैं। उस मीठी वेदना का आनंद उन्हीं से पूछो, जिन्होंने यह सौभाग्य प्राप्त किया”

― Munshi Premchand, गबन

“ग़रीबों में अगर ईर्ष्या या वैर है तो स्वार्थ के लिए या पेट के लिए।”

― Munshi Premchand, गोदान

“जब हमारे ऊपर कोई बड़ी विपत्ति आ पड़ती है, तो उससे हमें केवल दुःख ही नहीं होता, हमें दूसरों के ताने भी सहने पड़ते हैं।”

― Munshi Premchand, निर्मला

“बुढ़ापे में कौन अपनी जवानी की भूलों पर दुखी नहीं होता?”

― Munshi Premchand, गोदान

“प्रतिभा तो ग़रीबी ही में चमकती है दीपक की भाँति, जो अँधेरे ही में अपना प्रकाश दिखाता है।”

― Munshi Premchand, गोदान

“मेरा सिद्धांत है कि मनुष्य को अपनी मेहनत की कमाई खानी चाहिए । यही प्राकृतिक नियम है । किसी को यह अधिकार नहीं है कि व​ह दूसरों की कमाई को अपनी जीवन-वृत्ति का आधार बनाए”

― Munshi Premchand, प्रेमाश्रम

“सब नशों से ज्यादा तेज ज्यादा घातक धन का नशा है।”

― Munshi Premchand, गुप्त धन

“आदमी अगर धन या नाम के पीछे पड़ा है, तो समझ लो कि अभी तक वह किसी परिष्कृत आत्मा के संपर्क में नहीं आया।”

― Munshi Premchand, गोदान

“अच्छे कपड़ों में कुछ स्वाभिमान का अनुभव होता है।”

― Munshi Premchand, गुप्त धन

“क्रोध में आदमी अपने मन की बात नहीं कहता। वह केवल दूसरे का दिल दुखाना चाहता है।”

― Munshi Premchand, प्रेमाश्रम

“बड़े-बड़े महान संकल्प आवेश में ही जन्म लेते हैं।”

― Munshi Premchand, निर्मला

“आदमी बेईमानी तभी करता है, जब उसे अवसर मिलता है. बेईमानी का अवसर देना, चाहे वह अपने ढीलेपन से हो या सहज विश्वास से, बेईमानी में सहयोग देना है.”

― Munshi Premchand, पुत्र प्रेम

“जिसे रोने के लिए जीना हो, उसका मर जाना ही अच्छा।”

― Munshi Premchand, निर्मला

“भला आदमी वही है, जो दूसरों की बहू-बेटी को अपनी बहू-बेटी समझे। जो दुष्ट किसी मेहरिया की ओर ताके, उसे गोली मार देनी चाहिए।”

― Munshi Premchand, गोदान

“सुख में आदमी का धरम कुछ और होता है, दुख में कुछ और। सुख में आदमी दान देता है, मगर दु:ख में भीख तक माँगता है। उस समय आदमी का यही धरम हो जाता है।”

― Munshi Premchand, गोदान

“जब डूबना ही है, तो क्या तालाब और क्या गंगा।”

― Munshi Premchand, गोदान

“ब्याह तो आत्म- समर्पण है।’ ‘अगर ब्याह आत्म-समर्पण है, तो प्रेम क्या है?’ ‘प्रेम जब आत्म-समर्पण का रूप लेता है, तभी ब्याह है; उसके पहले ऐयाशी है।”

― Munshi Premchand, गोदान

“जो स्त्री अपने पुरुष को प्रसन्न न रख सके, अपने को उसके मन की न बना सके, वह भी कोई स्त्री है?”

― Munshi Premchand, गोदान

“सुखभोग की लालसा आत्म–सम्मान का सर्वनाश कर देती है।”

― Munshi Premchand, परीक्षा

“आदमी का सबसे बड़ा दुश्मन गरूर है।”

― Munshi Premchand, बेटी का धन

“जो दूसरे का गड्‌ढा खोदेगा, उसके लिए कुआं तैयार है”

― Munshi Premchand, प्रेमाश्रम

“क्रोध की अग्नि सद्‌भावों को भस्म कर देती है, प्रेम और प्रतिष्ठा, दया और न्याय, सब जलकर राख हो जाते हैं।”

― Munshi Premchand, बूढी काकी

“किसी के दीन की तौहीन करने से बड़ा और कोई गुनाह नहीं है.”

― Munshi Premchand, पुत्रप्रेम

“हम लोग समझते हैं, बड़े आदमी बहुत सुखी होंगे, लेकिन सच पूछो तो वह हमसे भी ज्यादा दुःखी हैं। हमें अपने पेट ही की चिंता है, उन्हें हजारों चिंताएँ घेरे रहती हैं।”

― Munshi Premchand, गोदान

“खुली हवा में चरित्र के भ्रष्ट होने की उससे कम संभावना है, जितना बन्द कमरे में।”

― Munshi Premchand, निर्मला

“दीपक का काम है, जलना। दीपक वही लबालब भरा होगा, जो जला न हो।”

― Munshi Premchand

“आप सीढ़ियों पर पाँव रखे बगैर छत की ऊँचाई तक नहीं पहुँच सकते।”

― Munshi Premchand

“कौन निःस्वार्थ किसी के साथ सलूक करता है? भिक्षा तक तो स्वार्थ के लिए ही देते हैं।”

― Munshi Premchand

“खाने और सोने का नाम जीवन नहीं है। जीवन नाम है सदैव आगे बढ़ते रहने की लगन का।”

― Munshi Premchand

“मैं अनुभव से कह सकता हूँ कि युवावस्‍था में हम जितना ज्ञान एक महीने में प्राप्‍त कर सकते हैं, उतना बाल्‍यकाल में तीन साल में भी नहीं कर सकते,”

― Munshi Premchand