Sita: Warrior of Mithila सीता : मिथिला की योद्धा
Sita: Warrior of Mithila Book Reviews In Hindi
“सीता : मिथिला की योद्धा (Sita: Warrior of Mithila)" पुस्तक पौराणिक कथाओं में आधारित लेखन करने वाले अमीश त्रिपाठी की रामचंद्र सीरीज की दूसरी पुस्तक है। इस किताब के कवर पेज पर सीता को पतिव्रता वाली सीता नहीं, बल्कि पराक्रम वाली सीता को चित्रित किया है। अब तक लोगो के दिमाग मे (मेरे दिमाग मे भी) सीता का नाम आते ही एक पतिव्रता देवी वाली फोटो बन जाती है, लेकिन अमीष त्रिपाठी के द्वारा लिखित “सीता : मिथिला की योद्धा (Sita: Warrior of Mithila)" पुस्तक मे सीता पतिव्रता देवी ही नहीं योद्धा भी है। यह किताब हमारे दिमाग मे पतिव्रता वाली सीता को पराक्रम वाली सीता मे बदलने का दम रखती है।
“सीता : मिथिला की योद्धा (Sita: Warrior of Mithila)" पुस्तक सीता के संघर्ष से शुरू होती है, और किताब के हर एक पेज के साथ उसका संघर्ष को बढ़ाता जाता है और सीता को योद्धा रूप में स्थापित करता जाता है। और किताब का कथानक अचानक गिद्ध और सियारों के संघर्ष के बीच जा पहुचता है जहां राजा जनक और रानी सुनयना को एक नन्ही बिटिया मिलती है, जिसका लालन-पालन जनकपुत्री सीता के रूप में होता है, किताब मे सीता के बचपन की एक घटना का जिक्र है, जिसमें सीता माँ के माना करने के बाद भी महल से भागकर गरीबों की गंदी और तंग गलियों वाली बस्ती में अकेली घूमने चली जाती है, जब वह महल वापस लोटना चाहती है तो रास्ता भूल जाती है और कुछ लड़के मिल जाते है जो सीता से गहने छीनने की कोशिश करते है, तभी वहा एक लडकी आती है, समिची जो बाद मे मिथिला की सेनाप्रमुख बनती है और पूरी किताब में एक रहस्यमयी किरदार बनी रहती है और पुस्तक के अंत में एक क्लू छोड़ जाती है जो कि इस के आगे आने बाली किताब को पढने के लिए मजबूर करता है।
इस किताब की कहानी एक ईश्वर के रूप को ध्यान मे रख कर नहीं बल्कि मानवीय अस्तित्व को ध्यान मे रख कर लिखी गई है, जिसमे सीता का अपने चाचा कुशध्वज संकश्या के राजा के प्रति नाराजगी, मलयपुत्रो और विश्वामित्र द्वारा सीता को विष्णु के लिए तेयार करना, और वशिष्ठ व वायुपुत्रो द्वारा राम को विष्णु के लिए तेयार करना, सीता का जटायु के साथ अगस्त्यकुटम का यात्राव्रतांत, सीता का अपने ही स्वयंवर का तैयारी करना, रावण का स्वयंवर से जाना और मिथिला पर युद्ध करना, राम का वनवास जाना और सीता को रावण के द्वारा पुष्पक विमान मे लेजाना आदि प्रसंगों का वर्णन पढ़ते समय ऐसा लगा कि एक टीवी विंडो खुला हुआ है ।
इस किताब मे भारत वर्ष के मौजूदा मुद्दों को बहुत ही अच्छे तरीके से ज्यादा सीधे ढंग से पुरातन कहानी में शामिल किया है, जाति प्रथा को कैसे खत्म किया जा सकता है इस पर सीता और विश्वामित्र की वार्ता, विश्वामित्र का क्षत्रिय होते हुये एक ब्राहम्ण ऋषि और रावण ब्राहम्ण एक क्षत्रिय होना । एक जगह जल्लीकट्टू का भी जिक्र आता है ।
किताब से ली गई कुछ अच्छी लाइनों:-
“आजादी अच्छी है, लेकिन संतुलन में । ज्यादा आजादी तबाही की तैयारी है । ” | |
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“कभी-कभी, आदर्श राज्य बनाने के लिए, अधिनायक को समय की जरूरत के हिसाब से निर्णय लेने पड़ते हैं; भले ही वह अल्पावधि में उचित ना लगे ।” | |
“अमीरों में अधिकांश अपराध लालच के चलते किए जाते हैं। लेकिन गरीबों में अपराध निराशा और गुस्से की वजह से होते हैं।” | |
“पेट भूखा होने पर हर कोई अपना चरित्र बचाए नहीं रख पाता है।” | |
“अंधेरे से डरो अंधेरे से मत डरो । प्रकाश एक स्रोत होता है । वह कभी भी छीन सकता है । लेकिन अंधेरे का कोई स्रोत नहीं होता । उसका अपना अस्तित्व होता है । यही अंधेरा उसका मार्ग है, जिसका कोई स्रोत नहीं है : ईश्वर ।” | |
“अपनी मंजिल तय करने के लिए दिल की सुनो, लेकिन मंजिल तक पहुंचने की रणनीति बनाने के लिए दिमाग का इस्तेमाल करो । सिर्फ अपने दिल की ही सुनने वाले लोग अक्सर असफल हो जाते हैं । जबकि दूसरी तरफ जो सिर्फ अपने दिमाग की सुनते हैं वह स्वार्थी है ।” |
Book Details
किताब- | सीता : मिथिला की योद्धा (Sita: Warrior of Mithila) |
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लेखक - | अमीश त्रिपाठी |
पब्लिशर- | वेस्टलैंड पब्लिकेशन |
आई एस बी एन (ISBN)- | 978-93-86224-85-9 |
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