ताम्रपाषाण युग
(Chalcolithic Period)

One line Question & Answer in Hindi


ताम्रपाषाण युग (Chalcolithic Period) : ताम्रपाषाण युग या ताम्र पाषाण संस्कृति का आरम्भ नवपाषाण युग के बाद हुआ, ताम्रपाषाण युग में औजार और हथियार के निर्माण में पत्थर के साथ ताँबें का भी प्रयोग होने लगा, इसीलिए इस समय को ताम्रपाषाण युग या ताम्रपाषाणिक युग कहते हैं।
सर्वप्रथम धातुओं में ताँबे का प्रयोग किया गया।
जिस संस्कृति ने पत्थर के साथ-साथ ताँबे का भी प्रयोग किया उसी संस्कृति को ताम्रपाषाणिक कहते हैं, जिसका अर्थ है ‘पत्थर और तांबे के उपयोग की अवस्था।
ताम्रपाषाण युग के लोग पशुपालन और कृषि किया करते थे। वे मुख्य अनाज गेहूँ, चावल, बाजरा, मसूर, उड़द और मूँग आदि दलहन फसलें भी उगाया करते थे।
ताम्रपाषाण युग के लोग भेड़, बकरी, गाय, भैंस और सूअर पाला करते थे, हिरन का शिकार करते थे।
ताम्रपाषाण युग ऊँट से परिचित थे इस बात के भी साक्ष्य ऊँट के अवशेष के रूप में प्राप्त हुए हैं।
ताम्रपाषाण युग के लोग घोड़े से परिचित नहीं थे।
ताम्रपाषाण युग के लोग समुदाय बनाकर कर गांवों में रहते थे तथा देश के विशाल भागों में फैले थे जहाँ पहाड़ी जमींन और नदियाँ स्थित थीं।
ताम्रपाषाण युगीन लोग पक्की ईंटों का प्रयोग नहीं करते थे संभवतः वह पक्की ईंटों से परिचित नहीं थे।
ताम्रपाषाण काल के लोग वस्त्र निर्माण करना जानते थे। साथ ही वह मिट्टी के खिलोने और मूर्ति (टेराकोटा की) के कारीगर थे। साथ ही कुंभकार, धातुकार, हाथी दाँत के शिल्पी और चुना बनाने के कारीगर थे।
ताम्रपाषाण काल के अधिकतर मृदभांड (मिट्टी के बर्तन) काले व लाल रंग के थे, जोकि चाक पर बनते थे कभी-कभार इन पर सफेद रंग की रेखिक आकृतियाँ बनी रहती थी।
मिट्टी की स्त्री रूपी मूर्ति से ज्ञात होता है कि ताम्रपाषाण कालीन लोग मातृ-देवी की पूजा करते थे और संभवतः वृषभ (सांड) धार्मिक पंथ का प्रतीक था।
राजस्थान में ताम्र संस्कृति के चिन्ह उदयपुर और राजसमंद जिले में मिलते है।
ताम्रपाषाण काल के प्रमुख स्थल : दक्षिण पूर्वी राजस्थान –अहार (उदयपुर),गिलुंद (राजसमंद)पश्चिमी महाराष्ट्र –जोखे,नेवासा, सोनगाँव और दैमाबाद (अहमदनगर),चंदौली (कोल्हापुर),इनामगाँव पश्चिमी मध्यप्रदेश –मालवा (मालवा),कयथा (मंडला),एरण (गुना)