अनुच्छेद: 048
हमारी पृथ्वी की लगभग दो-तिहाई सतह महासागरों के जल से ढकी हुई है । इन महासागरों की गहराई के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है । पृथ्वी की विशालतम
पर्वत-श्रेणी हिमालय भी इन महासागरों में पूरी तरह डूब सकता है । स्थल पर वनस्पति जीवन, पशु-जीवन तथा मानव-जीवन के समान महासागरों का भी अपना एक
संसार है । इन महासागरों में रहने वाले पशुओं और प्राणियों तथा स्थल के पशुओं और वनस्पतियों में विशाल अंतर है । समुद्र के प्राणियों की अजीब आकृतियों और
रंगों के कारण कोई भी आसानी से पौधों को पशु और पशुओं को पौधे समझने की गलती कर सकता है: मूँगे पशु हैं, किन्तु एकदम फूलों की तरह लगते हैं ।
इन अजीब प्राणियों और पौधों के कारण, महासागरों को अपने-आप में अजायबरघर माना जाता है ।