अनुच्छेद: 047
लोकमान्य तिलक अंग्रेजों द्वारा बंदी बनाए गए थे । उन्होंने जेल में अपने आप को अध्ययन में व्यस्त रखा । जेल बहुत ही शांत जगह थी, जहाँ पक्षी भी नहीं चहचहाते थे ।
तिलक ने अपने भोजन में से थोड़ा खाना पक्षियों के लिए रखना शुरू कर दिया । आरंभ में तो किसी ने वह खाना छुआ नहीं, किन्तु कुछ दिन बाद थोड़े से पक्षियों ने
वहाँ आना शुरू कर दिया । धीरे-धीरे उनकी संख्या बढ़ती गई और वे तिलक के चारों तरफ इकटठे होने लग गए । पक्षी उनके सिर और कंधों पर निडर होकर बैठ जाते थे ।
उनकी चहचहाहट से वतावरण में मधुर संगीत भर गया । एक दिन गश्त लगाते हुए जेलर तिलक की कोठरी की ओर आए । पक्षियों की चहचहाहट सुनकर उन्होंने कोठरी मे
झाँका और पूर्णतः आश्चर्यवकित रह गए ! उसने कहा, “यहाँ तो हर कोई पक्षियों को खा जाता है, इसलिए पक्षी इस ओर नहीं आते हैं ।” तिलक हँसकर बोले, “पक्षी
भी मित्र और शत्रु में भेद कर सकते हैं ।”