अनुच्छेद: 030
किसी गाँव में एक आदमी रहता था। वह लकडी बेचकर गुजारा करता थां । उसके यहॉ एक दिन एक साधू आया । उस आदमी ने साधू की बहुत सेवा की । साधू प्रसन्न हो गया ।
उसने उस आदमी को एक मुर्गी दी । साधू ने कहा, “यह मुर्गी प्रतिदिन सोने का एक अंडा दिया करेगी । इसे सँभालकर रखना । वह मुर्गी प्रतिदिन सोने का एक अंडा देती थी ।
थोडे ही दिनो में वह आदमी धनी हो गया । धन पा कर उस का लालच बढ गया । एक दिन उसने सोचा इस मुर्गी के पेट में सोने के बहुत से अंडे होगे । क्यो न इसका पेट
काटकर सारे अंडे एक ही बार में निकाल लूँ । ऐसा सोचकर उसने तेज छुरे से मुर्गी का पेट फाड डाला । उसके पेट में एक भी अंडा नहीं था । वह बहुत दुखी हुआ और रोने लगा ।
अतः हमे लालच नही करना चाहिए लालच का फल हमेशा बुरा होता है ।