अनुच्छेद: 030

किसी गाँव में एक आदमी रहता था। वह लकडी बेचकर गुजारा करता थां । उसके यहॉ एक दिन एक साधू आया । उस आदमी ने साधू की बहुत सेवा की । साधू प्रसन्‍न हो गया । उसने उस आदमी को एक मुर्गी दी । साधू ने कहा, “यह मुर्गी प्रतिदिन सोने का एक अंडा दिया करेगी । इसे सँभालकर रखना । वह मुर्गी प्रतिदिन सोने का एक अंडा देती थी । थोडे ही दिनो में वह आदमी धनी हो गया । धन पा कर उस का लालच बढ गया । एक दिन उसने सोचा इस मुर्गी के पेट में सोने के बहुत से अंडे होगे । क्यो न इसका पेट काटकर सारे अंडे एक ही बार में निकाल लूँ । ऐसा सोचकर उसने तेज छुरे से मुर्गी का पेट फाड डाला । उसके पेट में एक भी अंडा नहीं था । वह बहुत दुखी हुआ और रोने लगा । अतः हमे लालच नही करना चाहिए लालच का फल हमेशा बुरा होता है ।


Q.01 : आदमी ने किस की सेवा की ?

A. साधू की
B. मुर्गी की
C. स्वयं की
D. पुत्री की
Answer : A. साधू की
 

Q.02 : साधू ने आदमी को किया दिया ?

A. मुर्गा
B. मुर्गी
C. चाकू
D. सोना
Answer : B. मुर्गी

Q.03 : आदमी ने सोचा कि मुर्गी का पेट काटकर निकाल लुँ-

A. सोने का सारा अंडा
B. चॉदी का सारा अंडा
C. चाकू
D. इनमें से कोई नहीं
Answer : A. सोने का सारा अंडा
 

Q.04 : धन पा कर आदमी का लालच ..................... गया ।

A. बढ
B. कम
C. धीमा पड
D. शांत हो
Answer : A. बढ
   

Q.05 :  मुर्गी के पेट से अंडा नही निकलने पर आदमी को क्‍या हुआ ?

A. खुश हुआ
B. दुःख हुआ
C. संतोष हुआ
D. बेहोश हो गया
Answer : B. दुःख हुआ


अपठित गद्यांश